...गर थम जायें पहियें, तो पहिया थम जाये
निशांत सिंह। ‘‘गर थम जायें पहियें, तो पहिया थम जाये’’ इन शब्दों का पूर्णतः सम्बंध भारवाहन चालकों से है। जी हां... हमारे तथाकथित आधुनिक और उभरते हुए समाज का ऐसा तपका, जिनको सम्मान के दो शब्द भी मुसस्सर नहीं होते, और इस लेख के माध्यम से हम भी उनसे कोई खास हमदर्दी जाहिर नहीं करना चाहते, क्यूंकि सच तो यह है कि हमें भी नहीं है कोई अनुभूति उनके दिनचर्या की। मगर इसके बाद भी हम इतना तो कह ही सकते हैं कि जितना एक मध्यम वर्गीय व्यक्ति अपनी छाती ठोक कर कहता है कि हमारे टैक्स के पैसों से सरकार चलती है, सारे सरकारी लोगों को तनख्वाह मिलती है... उससे कहीं गुना ज्यादा एक भारवाहन चालक सरकार को टैक्स की कमाई करवा देता है, उसके बाद भी वह अपने जीवन की मूलभूत सुविधाओं से वंचित रह जाता है। हम बात को ज्यादा गहराई में नहीं ले जाना चाहते, इसलिए आपसे सिर्फ इतना साझा करते हैं कि एक चालक जब अपने भारवाहन को सड़क पर लेकर निकलता है तब सरकार को टोल टैक्स मिलता है, जब वह डीजल खपत करता है तब सरकार को टैक्स मिलता है, जब वह अपने वाहन में सामान की लदाई या उतराई करवाता है उस वक्त भी सरकार को टैक्स मिलता है, और ना हीं जा...