सरकारी स्कूल तो कमाई का अड्डा बन गये
संविधानिक अधिकार के कारण सरकार को प्राथमिक शिक्षा तो देनी पड़ती है समाज के हर तपके को, लेकिन ये सरकारी स्कूल तो कमाई का अड्डा बनते जा रहे हैं। सरकारी पैसा कई मदों के रूप में स्कूल तक तो भेजा जाता है, मगर उसका इस्तमाल देखते ही पता चल जाता है। बात करें चाहें बाऊंड्री वाॅल की, फर्नीचर की, रंगरोगन की, वृक्षारोपण की, शौचालय की, बिजली की, पानी की, मिड्डे मील की, यूनिफाॅर्म की, किताबों की, बजीफे की, इन सभी मदों का बजट हर साल करोड़ों में होता है, बजट आता भी है, तो ना जाने कैसे जमीनी स्तर तक पहुंच नहीं पाता। क्या इसकी वजह मान सकते हैं कि शासन से लेकर प्रशासन तक बजट को कई टैबल से होकर गुजरना पड़ता है? या कह सकते हैं कि अफसरों ने भी सरकारी पैसा बपौती समझ लिया है? निदेशालय से लेकर बीएसए दफ्तर तक कौन अनजान रह पाया है स्कूलों के जमीनी हालात से? शायद हर कोई जानता है कि जिले के सभी सरकारी विद्यालयों में जितने बच्चों का दाखिला लिखा गया है, उतने तो मौजूद भी नहीं है। कहने को पंखें और बल्ब लगते तो हैं स्कूलों में, लेकिन एक महीने के अंदर ही चोरी भी हो जाते हैं, जरूरत पड़ती है जब कागज का पेट भरने की तो लिखवा दी जाती है एफआईआर। वृक्षारोपण भी हर साल होता है प्रांगण के अंदर, लेकिन फलफूल नहीं पाता वो पौधा, वजह अगर पूछ भी लो तो जवाब पहले से रटा-रटाया कि गाय भैंस बकरी आ जाती है, बर्बाद कर देती हैं सब। चारदीवारी के नाम पर भी आता है कई अंकों की संख्या में बजट, लेकिन चारदीवारी तो दूर, पूरा स्कूल मानों खुले मैदान मैं लावारिस कमरों का लगता है। प्रेरणा श्लोकों से दीवार तो शायद पटी होनी चाहिए, लेकिन नियत साफ हो अफसरों की तब ना। रंगरोगन हेतु मिले पैसों पर अफसर पहले ही पुताई करके मूछों पर ताव देने से बाज नहीं आते। फर्नीचर आता तो हैं स्कूलों के लिए लेकिन पहुंच कहां जाता है, इसका पता कोई लगाकर तो दिखाये। इसके अलावा चाहें कितनी भी बातें करते रहो बस मिड्डे मील की बात ना छेड़ देना साहब! क्यूंकि ये मामला तो पहुंच चुका है उच्चतम न्यायालय तक, लेकिन मजाल है कुछ बदलाव आये। अफसर वो अफसर ही क्या जो आसानी से सुधर जाये। अदालती आदेशों तो आये कई, मिड्डे मील से लेकर अफसरों के बच्चों के दाखिल तक के, लेकिन कितने आईएएस और आईपीएस के बच्चे जाते हैं सरकारी स्कूल में पढ़ने ये समझने के लिए आपको हमारी जरूरत नहीं। हां खानापूर्ति तो शायद पूरी होगी, लेकिन इसकी सच्चाई खोजे, इतना समय है कहां किसी के पास। अब अंत में सवाल रहता है कि क्या तब तक बदलाव आने की सम्भावना नहीं है जब तक एसी कमरों के आदी अफसरों की बैठकें स्कूलों के ही प्रांगण में शुरू करवा दिया जाये।
Ekdm sahi baat h
ReplyDelete👍🏻👍🏻
ReplyDeletePointing out the root problems of government school. These problems must be look after as soon as possible.
ReplyDelete👍👍