निजी समाचार चैनलों का समाज में प्रभाव

निशांत सिंह।

नई दिल्ली 24 अप्रैल। आज के दौर में समाचार एक मूलभूत आवश्यकता बन गया है। सुबह चाय संग अखबार, या टीवी में समाचार... ना हो तो मानों दिन की शुरूआत में कमी लगने लगती है। संचार जैसी जरूरत का माध्यम बने समाचार को पूरा करने में सरकारी या निजी चैनलों ने कसर नहीं छोड़ी है। पल-पल की खबर हर पल आप तक पहुंचाने में समाचार चैनल जैसे दिन रात एक कर देने से पीछे नहीं हट रहे हैं। 

मगर मौजूदा समय का एक सच यह भी है कि पत्रकारों पर लांछन लगाने में भी कोई कमी नहीं दिख रही। ‘‘गोदी मीडिया’’, ‘‘बिकाऊ मीडिया’’, ‘‘चाटू पत्रकार’’, ये ऐसे आरोप हैं जो समाचार चैनलों के दामन पर लगने से बच नहीं सके। भारत में टीवी समाचार की शुरूआत जैसे ‘‘दूरदर्शन’’ के माध्यम से हुई थी, बीतते समय के साथ तमाम टीवी समाचार चैनल वैसी अपनी साख बचा नहीं सके। एक दौर में जहां समाचार चैनल पर शालीनता, धौर्यता, विन्रमता की कोई कमी नहीं थी, वहीं आज के समय में ये शब्द समाचार चैनलों से नदारद ही हो गये हैं। 

दूरदर्शन के माध्यम से टीवी समाचार चैनल की शुरूआत जिस मकसद के साथ की गई थी अर्थात शिक्षार्थ, सूचना और मनोरंजन के लिए की गई थी, वही समाचार जगत में निजी चैनलों के आ जाने के कारण से यह व्यापार का जरिया बनता ज्यादा नजर आने लगा है। संविधान के चैथे स्तम्भ का दर्जा प्राप्त मीडिया का मूल कार्य कार्यपालिका, विधायिका से हुई चूक को उजागर करके लोकतंत्र की रक्षा करना, आम जनता के कान और आंख बनकर समाज की परेशानियों को आवाज देना था। वह मीडिया समूहों की आपसी होड़ के बीच में अपनी वियवसनीयता पर खरी नहीं उतर पा रही है। जिसकी वजह भी साफ है कितमाम मीडिया समूह अपने बीच की ‘‘घोड़ों की दौड़’’ में खबर की परख- खबर का सही श्रोत, इसकी पड़ताल करने में अपना समय गवाना नहीं चाहते।

बात करें चुनावी दौर की, या खेल की... निजी समाचार चैनल दर्शकों को भ्रमित करने जैसा काम भी जाने-अंजाने खूब कर रहे हैं। आज के समय में खैरात की तरह बढ़ते जा रहे अखबारों और चैनलों की संख्या को या गैर-शिक्षित पत्रकारों को समाज से सिमटती समाचारों के प्रति विश्सनीयता का कारण ठहराना गलत नहीं होगा। जिसकी वजह है कि आज के दौर में छोटे-छोटे विज्ञापन या चंद लालच में आकर जिस तरह खबरों का सौदा किया जाता है, यह मीडिया जगत में दीमक से कम नहीं है। देश में अलग अलग करीब 150 भाषाओं में छप रहे विभिन्न अखबार, तमाम चैनल जिस तरह अपना निजीहित संवारने में खबरों की परख को वरीयता देने से बचने लगे हैं, जिस तरह आम जनता और अपने फर्ज के प्रति वफादारी का सौदा करने लगे हैं, इसका असर मीडिया जगत को उजाले की ओर नहीं ले जा रहा। 

आम नागरिक जिस प्रकार अखबार और समाचार चैनलों पर दिखाये जाने वाली हर क्रिया पर भरोस आंख बंद करके करता है, क्या मीडिया जगत उसी प्रकार आम लोगों के लिए वफादार है? यह एक अहम सवाल है जिसका जवाब आज के समय में शायद खुद मीडिया जगत भी पूर्ण विश्वास के साथ नहीं दे सकता। क्योंकि ऐसे कई किस्से सामने आये हैं जहां कुछ मीडिया समूहों ने भी पूरे जगत को शर्मसार किया है। ऐसे में निजी समाचार चैनलों की समाज में विश्वसनीयता और प्रभाव बेहतर कल के लिए ‘‘बबूल’’ पर चढ़ने जैसा है।



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