क्या साजो-सामान मान कर होने लगी महिलाओं की प्रस्तुति

निशांत सिंह।

Ladies and Gentlemen put your hands together for the very beautiful….‘‘फोर दि वैरी ब्यूटीफुल...’’। क्या ये कहना गलत होगा कि महिलाओं के लिए उनके हुनर और उनकी मेहनत से पहले उनकी सुंदरता को वरीयता दी जाने लगी है? बढ़ते आधुनिक दौर में जहां महिलायें किचन से बाहर आकर देश के विकास और चुनौतीपूर्ण नौकरी पेशे में भी पुरूषों के बराबर ही नहीं है, बल्कि कई हद तक आगे भी जा चुकी है, वहीं आज औद्योगिक जगत में महिलाओं की प्रस्तुति एक साजो-सज्जा का सामान बनता जा रहा है। 

यहां चाहें मीडिया जगत की बात करें, शिक्षा जगत की बात करें, सिनेमा जगत की बात करें, डाक्टरी पेशे की बात करें, वकालती पेशे की बात करें- ज्यादातर दफ्तरों में आगवानी के कार्य हेतु महिलाओं को चुना जाना एक प्रकार से उनको सजावट के सामान के समान ही चमक-दमक का साधन मान लेने के बराबर ही नजर आता है।

आमतौर पर देखा जाता है कि जब कभी किसी नये दफ्तर के आरंभ की तैयारी की जाती है तो उससे पहले ही तय कर दिया जाता है कि मुख्य द्वार के ठीक सामने एक अच्छी की टेबल डाल कर, आस-पास छोटे-छोटे गमले सजाने के बाद एक सुन्दर ही लड़की को बिठा देंगे ताकि कोई भी आये तो कहे कि भाई वाह! बड़ा बढ़िया आॅफिस है। 

इस प्रकार के शब्दों का चयन ही दर्शाता है कि महिलाओं को जहां समाज ने उच्च श्रेणी के दर्जे पर विराजमान होने के लिए प्रोत्साहित किया है, वहीं समाज महिलाओं को एक ओछी और घिनौनी सोच के साथ आज भी देखता है।

हम इस बात से बिल्कुल इनकार नहीं करते कि महिलायें आज स्वंय इस काबिलियत को हासिल कर चुकी हैं कि वह अपना अच्छा-बुरा खुद तय कर सकती हैं, परन्तु आज हम यहां बात कर रहे हैं समाज के सोच की।

अगर बात करें मीडिया जगत की तो, कुछ ही समय पहले जहां इस जगत में महिलाओं की संख्या ना के बराबर थी, वही आज शायद ही इस जगत का कोई क्षेत्र हो जहां महिलाओं ने अपना वर्चस्व नहीं जमाया। अपने कार्य के प्रति अतिसंवेदनशील होने के कारण महिलाओं ने ना सिर्फ मीडिया जगत में अपना नाम बनाया बल्कि तकरीबन पूर्णतौर पर कब्जा जमाने के समीप भी कहा जाये तो शायद गलत नहीं होगा।

अब अगर बात करें सिनेमा जगत की तो बेहद ही शर्मनाक शब्द है ‘‘आइटम’’, जिसे बड़े उत्साह के साथ इस जगत में बोला जाता है। वर्तमान में प्रसारित होने वाली कुछ ही फिल्में होती है जिनमें कोई आइटम साॅन्ग ना हो, और ये सभी आइटम साॅन्ग के नाम पर महिलाओं को अर्द्धनग्न ही दिखाया जाता है।

इसके बाद बचता है विज्ञापन जगत। अगर कहा जाये कि विज्ञापन जगत एक प्रकार से अपनी सारी शर्मोहया को भुलाये महिलाओं को करीब-करीब नग्न ही प्रदर्शित कर देना चाहता है तो मेरी बात से इनकार करना सबके बस की बात ना होगी। फिर चाहें किसी साबुन का विज्ञापन हो, किसी शैम्पू का विज्ञापन हो, किसी तेल का विज्ञापन हो, किसी बाॅडीलोशन का विज्ञापन हो, अंतर्वस्त्रों का विज्ञापन हो या किसी निरोधक कंपनी का विज्ञापन हो, इस प्रकार के सभी विज्ञापनों में महिलाओं को करीब करीब नग्न ही प्रदर्शित कर दिया जाता है।

अब अगर हम बात करें सबसे सम्मानित जगत शिक्षा जगत की तो यहां भी इस प्रकार की घटिया सोच ने कोई कसर नहीं छोड़ी। आमतौर पर निजी शिक्षण संस्थानों में महिलाओं को शिक्षक की आड़ में वरीयता ही ज्यादातर अपने संस्थान की शोभा बढ़ाने के उद्देश्य से दी जाने लगी है। शिक्षक जैसे ससम्मानित पद पर तैनात महिलायें जिस प्रकार अपने कर्तव्यों के प्रति वफादारी से अपना काम प्रदर्शित करती हैं, उसका कोई मोल चुका पाना आसान नहीं है। लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि इस प्रकार की ओछी सोच ने यहां अपने कदम कतई नहीं जमा पाये।

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